आज की कहानी- ‘बेटियॉं’
मैंने कुछ दिन पहले आपको एक सच्ची कहानी सुनाई थी। सच कहूं तो वो कहानी मेरी आंखों के सामने घटी हुई घटना थी। मैं एक परिचित के ऑपरेशन के दौरान दिल्ली के मैक्स अस्पताल में उन्हें देखने गया था और ऑपरेशन थिएटर के बाहर उनका इंतज़ार कर रहा था। मेरी तरह ही कई लोग अपने-अपने परिजनों का इंतज़ार कर रहे थे।
मेरी निगाह ऐसे में एक लड़की पर गई थी, जो ऑपरेशन के बाद अपने पिता का इंतज़ार कर रही थी। कई घंटों के इंतज़ार के बाद पिता ऑपरेशन थिएटर से बाहर निकले थे और डॉक्टर जब उन्हें स्ट्रेचर पर बाहर लेकर आ रहे थे, तो लड़की की आंखों की चमक मैंने देखी थी। पिता होश में थे और लड़की पिता को देख कर बहुत खुश थी। अपनी खुशी में बेटी ने पिता से कहा था कि भैया का फोन भी अमेरिका से आया था, आपके बारे में पूछ रहे थे। पिता ने बेटी की ओर बहुत कातर भाव से देखा था।
बेटी ने पिता से कहा था कि भैया ने उनका हाल फोन पर पूछा था। डॉक्टर बेटी की बातें सुन रहा था। उसने बेटी से कहा कि आप चाहें तो अपने भाई से फोन पर बात पिता की बात भी करा सकती हैं, वो बात कर पाने की स्थिति में हैं। बेटी ने चहकते हुए भाई को फोन लगाया था। फोन स्पीकर पर था। फोन की घंटी बजी, उधर से हैलो की आवाज़ आई थी, जिसे आपके संजय सिन्हा ने भी सुनी थी। बेटी ने करीब-करीब उछलते हुए कहा था कि भैया पापा का ऑपरेशन सफल रहा, लो तुम बात कर लो।
भाई को नहीं पता था कि फोन स्पीकर पर है। उसने उधर से कहा था कि यहां इतनी रात है, अभी फोन करने की क्या ज़रूरत थी। तुम हो तो वहां, कल बात करूंगा। पिता ने भी बेटे के इस कहे को सुना था। स्ट्रेचर पर लेटे पिता ने अपनी आंखें पोंछीं थीं और संजय सिन्हा के मन ने कहा था कि सचमुच उस वक्त हिंदुस्तान में दिन था और अमेरिका में रात थी। जहां बेटी थी, वहां उजाला था और जहां बेटा था वहां अंधेरा था। इसी फलसफे में मेरी कहानी ने संदेश दिया था कि जहां बेटियां होती हैं, वहां उजाला होता है।
मेरा विश्वास है कि सचमुच जहां बेटी होती है, वहां उजाला होता है।
मैं आज आपको ये कहानी नहीं सुनाता। पर कल मेरे पास एक-एक कर चार लोगों ने एक ही संदेश व्हाट्सऐप पर भेजा। बहुत छोटा लेकिन मेरे विश्वास की रक्षा करता हुआ संदेश।
उस संदेश आज मैं आपके सामने रख रहा हूं और चाहता हूं कि इस संदेश को आप भी सुनें, समझें, आत्मासात करें।
बेशक ये एक काल्पनिक कहानी होगी, पर हकीकत के बहुत करीब है।
एक लड़का-लड़की की शादी हुई। दोनों ने तय किया कि उस रात जब वो कमरे में साथ-साथ होंगे तो वो किसी के लिए दरवाज़ा नहीं खोलेंगे। चाहे कोई भी मिलने चला आए, वो अपने प्रेम को जीते रहेंगे, दरवाज़ा नहीं खोलेंगे। दोनों कमरे में थे, तभी दरवाज़े पर खट-खट की आवाज़ हुई। लड़के ने खिड़की से झांक कर देखा कि उसके पिता दरवाज़ा खटखटा रहे हैं। शायद किसी मुसीबत में थे और चाह रहे थे कि बेटा उनकी बात सुन ले।
लड़के ने लड़की की ओर देखा। दोनों को शर्त याद थी कि किसी के लिए दरवाज़ा नहीं खोलेंगे, चाहे कुछ भी हो जाए। पिता ने दो-चार बार कुंडी खटखटाई, लड़का चुपचाप बिस्तर पर लड़की की बांहों में खो गया। लड़का के पिता लौट गए।
कुछ देर बाद ही फिर दरवाज़े पर खट-खट हुई। अबकी लड़की ने खिड़की से झांका। इस बार लड़की के पिता दरवाज़े पर दस्तक दे रहे थे। पता नहीं क्या ज़रूरी काम था। लड़की ने लड़के की ओर देखा। दोनों को अब भी शर्त याद था। पर लड़की ने कहा कि उसके पिता को पता नहीं क्या ज़रूरत है, वो इस तरह उनकी अनदेखी नहीं कर सकती। दरवाज़ा खोलना ही पड़ेगा। लड़की ने शर्त तोड़ दी और पिता से मिलने चली गई।
बहुत दिन बीत गए। लड़की एक बेटे की मां बनी। कुछ साल बाद लड़की एक बेटी की भी मां बनी। जब वो बेटी की मां बनी तो लड़का ने बहुत बड़ी पार्टी का आयोजन किया।
लड़की ने अपने पति से पूछा कि तुमने बेटा के होने पर तो कोई पार्टी नहीं दी थी, लेकिन बेटी के होने पर पार्टी क्यों दी?
लड़के ने कहा कि दरवाज़ा तो बेटी ही खोलेगी।
सचमुच बेटियां ही दरवाज़ा खोलती हैं।